कोरोना में गरीब पस्त, मध्य वर्ग परेशान, अमीर मना रहे उत्सव - संजय सिंह
लाॅकडाउन का सबसे ज्यादा असर गरीब मजदूरों के ऊपर पडा है। अचानक हुये लाॅकडाउन के कारण उनके सामने भोजन एवं आजीविका का संकट पैदा हो गया है। जैसे-जैसे लाॅकडाउन बढ रहा है, इसका असर सबसे ज्यादा इसी वर्ग पर दिखायी दे रहा है। शुरूआत में तो मजदूरों की मजदूरी उनके नियोक्ताओं ने दे दी लेकिन अ बवह मजदूरी देने के लिए तैयार नहीं है। मजदूरों के पास अब पेट भरने के लाले है ऐसे में वह शहर छोडकर अपने गांव की तरफ बिना रेल बस के पैदल ही निकल पडे है। हजारों किलोमीटर की यात्राऐं करके मजदूर अपने गांव पहुच रहे है। दसीयो दिन से पैदल चल रहे है। भूख एवं प्यास के कारण बेहाल है, जो पहले गांव आ गये उनके लिए भी मजदूरी का गहरा संकट है। मजदूरों के ऊपर कोरोना गाज की तरह गिरा है, जिसके कारण वह पूरी तरह से आर्थिक रूप से टूट चुके है। उनको अपने भविष्य की चिंता सता रही है। कैसे वह अपने बच्चों को पेट भरेगा और अपना जीवन जी पायेगा। वही कोरोना का असर अब धीरे-धीरे मध्य वर्ग के ऊपर दिखायी देने लगा है। जो लोग सम्मानजनक ढंग से कमाते थे आज वह भी परेशान है। वह ना तो सरकार से राहत ले सकते है ना ही समाज के लोगों को अपना दर्द बता सकते है। जल जन जोडो अभियान के राष्ट्रीय संयोजक संजय सिंह ने कहा कि गरीब पस्त है मध्य वर्ग परेशान है अमीर लोग इसको उत्सव की ओर मना रहे है। नाम न बताने पर एक एडवोकेट ने बताया कि वह अपनी जरूरत के हिसाब से रोज कमाकर लाते थे। लगातार अदालते बंद होने के कारण उनके सामने भी संकट है। इसी तरह से होटल में मैनेजर का काम करने वाले राविन्द्र गुप्ता ने कहा कि मार्च की सैलरी तो मालिक ने दे दी थी, अप्रैल की सैलरी वह देने के लिए तैयार नही है। सैलरी ना मिलने पर परिवार के सामने आर्थिक संकट उत्पन्न हो जायेगा कैसे वह अपनी जरूरतों को पूरा कर पायेगे इसको लेकर वह लगातार तनाव में है। झांसी शहर के एक प्रतिष्ठित हेयर सेलून चलाने वाले मालिक ने कहा कि एक महिने से अधिक के बंद में उनकी आर्थिक स्थिति पूरी तरह से गढबढा गयी है। वह बैंक की किश्त नहीं भर पा रहे है। उनके साथ काम करने वाले लोग कमाते और खाते थे उनकी मदद भी ठीक से नहीं कर पा रहा हूं। एक सौन्दर्य प्रशाधन बेचने वाले सेल्स मेन ने बताया कि लाॅकडाउन के कारण उनकी सेल प्रभावित हुयी है, जिसके कारण उनके सामने आर्थिक संकट है, वही सम्पन्न अमीर परिवारों में कोरोना को फैमिली टूरिज्म की तरह मनाया जा रहा है। एक सम्पन्न परिवार से सम्बन्ध रखने वाली कविता पाण्डे ने बताया कि कोरोना के कारण हुये लाॅकडाउन के बाद उनका पूरा परिवार बहुत खुश है, पुरूष लोग घर में अधिक समय दे रहे है। मनपंसद भोजन बन रहे है। सीरियल एवं मूवीस सामूहिक रूप से देखे जा रहे है। कोरोना ने एक अच्छा मौका आराम करने का दिया है। सम्पन्न परिवार से ताल्लुक रखने वाली साजिया खान (परिवर्तित नाम) बता रही है कि उनके भाई को पास मिला है जिसके आधार पर वह लाॅकडाउन के समय रिश्ते-नातेदारों के पास घूम रही है। अधिकांश सम्पन्न वर्ग के लोगों ने या तो पास बनवा लिये है या फिर राजनैतिक दलों के झण्डे व नम्बर प्लैट लगाकर लाॅकडाउन के समय बेखौफ होकर घूम रहे है। लाॅकडाउन का सबसे अधिक पालन गरीब एवं मध्य वर्ग के लोग ही कर रहे है, सम्पन्न वर्ग लोग तो लाॅकडाउन को पिकनिक की तरह मना रहे है। पुलिस के एक इंस्पेक्टर ने बताया कि उन्होंने एक राजनैतिक दल के पदाधिकारी को जब लाॅकडाउन ना तोडने की नसीहत दी तो इस पर उनके समर्थन में स्थानीय विधायक से लेकर लखनऊ के उनके विभाग के कई आलाधिकारियों के फोन उनके पास आ गये। बाॅडर पर डयूटी कर रहे सब इस्पेंक्टर ने बताया कि जब वह जिले की सीमा में घुसने से रोकते है तो कल रात उनके पास मण्डल के एक वरिष्ठ अधिकारी का फोन आया और उन्होंने उन्हें छोडने के लिए आदेश दिया। सामाजिक कार्यकर्ता भग्गूलाल वाल्मिकी कहते है कि सबसे ज्यादा कोरोना का असर गरीब लोगों के ऊपर है, सम्पन्न वर्ग तो इसे छुटटी की तरह मना रहा है। बुन्देलखण्ड राज्य आंदोलन से जुडे सामाजिक कार्यकर्ता अमित त्रिपाठी कहते है कि गरीब के लिए तो रोजी रोटी का संकट है सम्पन्न लोगों के लिए यह पिकनिक एवं उत्सव जैसा है।